30Apr
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30Apr
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
30Apr
मैंने अपनी पीड़ा किसी को नहीं बताई,
क्योंकि मेरा मानना है कि व्यक्ति में
इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख,
अपने संघर्षों से अकेले जूझ सके
30Apr
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30Apr
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29Apr
तुम्हारी नूर के दीदार को ,
कहाँ रोक पायेगा हिजाब।
दिल मेरा कहता है,
क्यों ना दे दूँ तुम्हें,
जन्नत की हूर का ख़िताब।।
29Apr
वक़्त चलता गया पानी के नज़ारों की तरह
चाहे कितना किया कश्ती से किनारा हमने
याद है शाम वो ठहरी तेरी पहली वो नज़र
तब से खोई है हर इक साँस हमारी हमने
29Apr
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29Apr
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29Apr
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दर्द छुपाते छुपाते,
दर्द में जीने की आदत हो गई !
” मैं शायर तो नहीं “
कुछ यहां से, कुछ वहां से…
सबका धन्यवाद !
चेहरे पर चेहरा लगाना पड़ता हैं,
मैं ठीक हूं ये कहकर मुस्कुराना पड़ता हैं !