कोई तुम पर आंख बंद करके भरोसा करता है,
तो कभी उसे ये एहसास ना होने देना की वो अंधा है...
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तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
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मैंने अपनी पीड़ा किसी को नहीं बताई,
क्योंकि मेरा मानना है कि व्यक्ति में
इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख,
अपने संघर्षों से अकेले जूझ सके
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और आखरी में, वादों का महल ढह गया,
दिल के हिस्से में सिर्फ़ तड़पना रह गया !!
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ना मंदिर कि बात होगी ना शिवालय की बात होगी,
प्रजा बेरोज़गार है निवालों की बात होगी
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तुम्हारी नूर के दीदार को ,
कहाँ रोक पायेगा हिजाब।
दिल मेरा कहता है,
क्यों ना दे दूँ तुम्हें,
जन्नत की हूर का ख़िताब।।
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वक़्त चलता गया पानी के नज़ारों की तरह 
चाहे कितना किया कश्ती से किनारा हमने
याद है शाम वो ठहरी तेरी पहली वो नज़र
तब से खोई है हर इक साँस हमारी हमने
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अब वो किसी और से कहता होगा
तुम ही मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो ...!!
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प्रेम से बढ़कर त्याग है
दौलत से बढ़कर मानवता
परन्तु सुंदर रिश्तों से बढ़कर
इस संसार मे कुछ भी नहीं !!
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मन से जुड़कर तुझे तौलती हूं ,
मैं हम से जुड़कर हमसे महकती हूं .. !!
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दर्द छुपाते छुपाते,
दर्द में जीने की आदत हो गई !

” मैं शायर तो नहीं “

कुछ यहां से, कुछ वहां से…

सबका धन्यवाद !

चेहरे पर चेहरा लगाना पड़ता हैं,
मैं ठीक हूं ये कहकर मुस्कुराना पड़ता हैं !